सिंदबाद , मैजिकल लाइफ
खुश तो सिंदबाद भी हो गया था पर उसकी खुशी उसे थोड़ी अधूरी लग रही थी। इसलिए वह बस इधर उधर गर्दन घुमा कर वहां का जायजा लेने लगा था। उसके ऐसे गर्दन घुमाने पर उनकी इकलौती सौदागर साथी वह हसीना उसे नजर आई। उस हसीना को देखते ही सिंदबाद की आंखों में एक अजीब सी चमक दिखाई पड़ी। सिंदबाद ने अपनी आंखों की चमक को छुपाते हुए इधर उधर देखना शुरू कर दिया। उसके दिल में जो एहसास उमड़ रहे थे.. अभी तक सिंदबाद को भी वह समझ में नहीं आ रहे थे। तो नहीं चाहता था कि बेवक्त पर उसके एहसासात किसी और को दिखाई दे। अभी तक वह खुद किसी भी मामले में यकीनी नहीं था। उस टापू के सरदार का नाम अमीर चंग जिओ था और वो वहां के रेशम का सबसे बड़ा कारोबारी भी था। उसे इस बात का बहुत ही ज्यादा घमंड भी था कि उससे अच्छी रेशम मछहर टापू पर कोई भी नहीं बना सकता था। इसी बात का फायदा वह उठाता था। अभी तक किसी को भी उसकी रेशम बनाने की तकनीक नहीं पता थी। जब सब लोग वहां रुके.. तो वह लोग सरदार चंग जिओ के मेहमान खाने में ठहराए गए थे उसका मेहमान खाना बहुत ही ज्यादा बड़ा और आलीशान था। उसकी खूबसूरती देखते ही बनती थी। उसकी अमीरी का रौब उसकी हर एक चीज में दिखता था। जो उसके अमीर होने का सबूत भी देता था। वह मेहमान खाना उस टापू के बीचोबीच बाजार के नजदीक था। देखने में बाहर से ही वह किसी मीनार को टक्कर देने की कुव्वत रखता था। उस मेहमान खाने में बड़े-बड़े नक्काशीदार कमरे और उनकी छतों और दीवारों पर भी बहुत ही महीन नक्काशी की हुई थी। जगह जगह उसमें कांच का भी इस्तेमाल खूबसूरती से किया गया था। सभी सौदागर उस मेहमान खाने की खूबसूरती में दीवाने हो गए थे। अधिकतर सौदागर उस मेहमान खाने को देख कर आहे भरने लगे थे। उन्हें अपना घर भी उसी मेहमान खाने की तरह बनवाने की ख्वाहिश जाग गई थी। सिंदबाद के मन में भी ऐसी ही एक ख्वाहिश ने घर कर लिया था। उनकी साथ ही की सौदागर हसीना उस पूरे मेहमान खाने को घूम घूम कर देख रही थी और साथ ही साथ उस नक्काशी पर हाथ रखकर उसकी बनावट और खूबसूरती को महसूस कर रही थी। उसने जैसे मन ही मन उस खूबसूरती को बसा लिया था.. ताकि वापस जाकर वैसा ही खूबसूरत घर अपने लिए बना सकें। वह लोग शाम के वक्त उस टापू पर पहुंचे थे.. इस वजह से वह लोग जल्दी ही खा पीकर आराम करने की तैयारी करने लगे। जिसके इंतजामात अमीर चंग जिओ ने करवाए थे। अगले दिन सभी जल्दी उठकर अपना अपना माल बेचने और खरीदने के लिए बाजार में निकल गए। सिंदबाद भी घूमता घूमता काफी कुछ बेचता खरीदता.. इधर उधर घूम रहा था.. कि उसकी नजर उसी सौदागर हसीना पर पड़ी.. जो कुछ हैरान-परेशान से इधर उधर टहल रही थी। वह शायद किसी का इंतजार कर रही थी.. इसलिए कुछ बेचैन सी थी। सिंदबाद ने उसके पास जाकर उसकी इस बेचैनी की वजह जाननी चाही। सिंदबाद ने झिझकते हुए उस हसीना से कहा, "जी.. ज.. जी मेरा नाम सिंदबाद है। मैं भी उसी जगह से कारोबार के सिलसिले में यहां आया हूं। जा.. जहां से आप आई हैं।" उस सौदागर हसीना ने मुस्कुराते हुए कहा, "मैंने देखा था आपको... हम एक ही जहाज के सवार हैं.. एक ही जहाज से हम लोग कारोबार के सिलसिले में सफर कर रहे हैं। वैसे मेरा नाम नाजिया है।" सिंदबाद ने उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा और बेतकल्लुफ होते हुए कहा, "नाजिया..!! बहुत ही खूबसूरत नाम है.. पर एक बात पूछूं..??" सिंदबाद ने बात आगे बढ़ाने की गरज से पूछा। नाजिया ने अपने चेहरे पर सवालिया निशानों के साथ सिंदबाद से पूछा, "क्या पूछना चाहते हो..??क्या बात होगी??" सिंदबाद ने ठहाका लगाते हुए कहा, "नहीं.. नहीं.. कुछ खास नहीं.. बस मैं तो पूछ रहा था.. पूछ सकता हूं ना?? आप बुरा तो नहीं मानेगी??" फिर कुछ रुक कर सिंदबाद ने एक अदा के साथ सिर झुकाकर पूछा, "पूछें तो..??" नाजिया खिलखिला कर हंस पड़ी। उसे ऐसे हंसता देख सिंदबाद उसकी हंसी में ही खोकर रह गया था। जब वह ऐसे बेपरवाह होकर नाजिया को देख रहा था। तभी एक शख्स ने आकर नाजिया को पीछे से पुकारा.. "नाजिया..!!" नाजिया ने पलट कर उसकी तरफ देखा तो वह भागते हुए उस शख्स के नजदीक गई और उसे कसकर करे लगा लिया। नाजिया को किसी गैर मर्द के ऐसे गले लगते देखकर सिंदबाद के दिल में कुछ दरकता हुआ महसूस हुआ। उसे बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा था.. "यह कैसे जज्बात थे.. जो वह नादिया के लिए महसूस कर रहा था।" नाजिया को ऐसे किसी और की बाहों में देखकर सिंदबाद बिना कुछ बोले.. वहां से वापस मेहमान खाने की तरफ लौट गया। उसका माल अधिकतर बिक चुका था.. जो थोड़ा बहुत बाकी था.. वह सामान अगले पड़ाव पर बेचने का मन सिंदबाद ने पहले ही बना लिया था। अब बस उसकी खरीदी हुई रेशम जो बहुत ही ज्यादा कीमती और हैरतअंगेज थी। सिंदबाद थोड़ा सा दुखी हो गया था.. नाजिया की वजह से। नाजिया जो किसी गैर मर्द के की बाहों में थी.. यह बात सिंदबाद को नागवार गुजर रही थी। फिर भी वह अपने दिल को समझाने की पुरजोर कोशिश कर रहा था। "नाजिया उसकी अपनी कोई मिल्कियत थोड़ी थी। वह खुद भी तो नहीं जानता था कि उसे बुरा क्यों लग रहा था। कैसे किसी और लड़की के बारे में वह इस तरह से सोच सकता था।" पर उसका दिल इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं था। दुखी मन से वह वापस आकर उसी मेहमान खाने में सो गया। बाकी के सभी सौदागर भी अपना अपना सौदा करके मुनाफा कमाने के बाद बहुत कुछ आगे कारोबार के लिए खरीद कर आए थे। उन्होंने सिंदबाद को सोते हुए देखा तो उन्हें लगा कि शायद सिंदबाद का काम जल्दी ही खत्म हो गया होगा.. और किस को भी वहां ना देख कर वह सो गया होगा। वह सब लोग भी अपने-अपने बिस्तर पर जाकर आराम करने लगे। रात के लगभग आधी रात के वक्त किसी की हड़बड़ाहट भरी आवाज से उनकी नींद खुली। कोई उन्हें जबरदस्ती जगाने की कोशिश कर रहा था। इतनी मीठी नींद में जगाना उन लोगों को पसंद नहीं आया था। कुछ लोग तो बड़बड़ाहट भी करने लगे थे। कह रहे थे, "क्या गरज पड़ी जो आधी रात के वक्त हमारी नींद खराब करने चले आए..??" ऐसा कहकर कुछ लोग बड़बड़ाए जा रहे थे। पर जब जगाने वाले आदमी को उन्होंने देखा तो सामने नाजिया को खड़ा पाया। नाजिया इस वक्त बहुत ही ज्यादा पशोपेश में थी। उसने तुरंत ही जहाज के कप्तान को जल्दी से जल्दी वहां से निकलने का इशारा किया। नाजिया ने दबी जबान में कप्तान से कहा, "कप्तान साहब..!! यह जगह ठीक नहीं है.. हमें अभी इसी वक्त यहां से कूंच करना होगा। यहां पर कुछ ऐसा है.. जो हम सबकी जान के लिए ठीक नहीं है।" सभी लोग आधी नींद में थे पर यह बात सुनकर अचानक उनकी नींद उड़ गई थी। सभी ने मुंह खोलकर नाजिया को देखा और उस से कुछ पूछने के लिए मुंह खोला.. वैसे ही नाजिया ने अपने मुंह पर हाथ रखकर उन्हें चुप रहने का इशारा किया। नाजिया ने बहुत ही दबी जबान में उन सब से कहा, "आप सब अगर सही सलामत इसी जिंदगी अपने परिवार से मिलना चाहते हो.. तो बिना किसी तरह का कोई सवाल किए.. अभी के अभी सारा सामान उठाकर जहाज पर चलो। मैं सारी बात आप लोगों को जहाज पर ही बताऊंगी। यह वक्त यहां पर रुक कर बात करने का नहीं है। मुनासिब यही होगा.. कि आप लोग बिना ज्यादा सवाल जवाब किए यहां से जहाज पर पहुंचे। और हां..!! इस बात का खास ध्यान रखना की कतई आवाज ना हो । किसी को भी भनक भी ना लगे हमारे यहां से निकलने की सोच रहे हैं।" सभी लोग हैरान परेशान उसी की तरफ देख रहे थे। सिंदबाद अपने बिस्तर पर सुकून की नींद में सोया पड़ा था। इतना सब कुछ होने के बाद भी उसकी नींद नहीं खुली थी। नाजिया ने जब सिंदबाद को उस वक्त भी सोते देखा.. तो उसे भी हैरानी हुई और थोड़ा सा गुस्सा भी आया कि कैसे कोई आदमी इतनी मुसीबत के वक्त भी ऐसे घोड़े बेच कर सो सकता था। नाजिया ने गुस्से में आकर सिंदबाद को उसके बिस्तर से नीचे धकेल दिया। बिस्तर से नीचे गिरते ही सिंदबाद की नींद खुल गई। वह जैसे ही चिल्लाने वाला था.. नाजिया ने अपने हाथ से सिंदबाद का मुंह कस कर बंद कर दिया था.. ताकि वह चिल्ला नहीं पाए। नाजिया को ऐसे देखकर सिंदबाद ने अपनी बड़ी बड़ी आंखों से नाजिया को घूरा। उसके ऐसे घूरने पर नाजिया ने गुस्से में इस बात पर कहा, "तुम्हें अगर अपनी जान की परवाह नहीं है.. तो तुम यहाँ रुक सकते हो। और अगर परवाह है.. तो बिना किसी तरह की आवाज किए.. अपना सारा सामान जल्दी से उठाओ और जहाज पर पहुंचो।" नाजिया भले ही गुस्से में थी पर अभी भी उसकी आवाज बहुत ही नीची थी। इतना धीरे की पास खड़े आदमी को ही ठीक से सुनाई ना दे.. तो बाहर किसी के सुनाई देने का सवाल ही नहीं उठता था। सभी लोग हैरान-परेशान से जल्दी जल्दी अपना सामान समेट रहे थे। नाजिया ने बाकी सब की तरफ से देखा और तब फिर से कहा, "जितना जल्दी हो सके.. उतना जल्दी जहाज पर पहुंचो.. क्योंकि मैं और कप्तान साहब जहाज पर जाकर उसको निकलने के लिए तैयार कर रहे हैं। और हां.. ध्यान से कोई बेवकूफ़ी नहीं होनी चाहिए। वरना हम आप लोगों को यही छोड़ कर निकल जाएंगे।" सभी सौदागरों के हाथ इतनी फुर्ती से चल रहे थे जैसे कि सामने मौत का फरिश्ता खड़ा था और उसने कुछ ही वक्त की मोहलत दी थी ताकि वह अपनी जान बचाने के लिए आखिरी कोशिश कर सकें। भागते हुए सभी लोग जहाज पर जल्दी-जल्दी अपना सामान चढ़ा रहे थे। सब लोग मिलकर एक दूसरे की मदद करते हुए सामान को जहाज पर लदवा रहे थे। हवा का रुख कुछ कुछ उनके हिसाब से नहीं था फिर भी दरिया में बचने के कुछ तो आसार हो सकते थे.. पर अगर उस टापू पर रुके तो बचने की कोई भी गुंजाइश नहीं थी। जल्दी ही उन लोगों ने सारा सामान जहाज पर लाद दिया और सभी लोग उस जहाज पर चढ़ गए। कुछ ही वक्त में जहाज में उस टापू को छोड़ दिया और रात में ही बहुत ही तेज चाल से चलने लगा। वह सभी लोग जल्द से जल्द उस टापू से एक महफ़ूज़ फासले पर पहुंच जाना चाहते थे। जहाज के महफूज फासले पर पहुंचने के बाद ही सभी ने एक राहत की सांस ली। अब सबके जहन में एक ही सवाल उठ रहा था। वह यह कि, "ऐसी क्या आफत आन पड़ी थी.. जिसकी वजह से उन लोगों को रातों-रात चोरों की तरह उस टापू से भागना पड़ा।" सभी लोग अपने सवालों के जवाब चाहते थे। पर उन्हें नाजिया कहीं भी नजर नहीं आ रही थी। उन लोगों को ऐसा लग रहा था जैसे उन लोगों के साथ कुछ बहुत ही बड़ा मजाक हुआ था। सभी लोग नाजिया को ही ढूंढ रहे थे। सिंदबाद भी उन लोगों के साथ ही नाजिया को ढूंढ रहा था.. जो उसे कहीं भी नजर नहीं आ रही थी।
Anjali korde
10-Aug-2023 11:13 AM
Beautiful
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RISHITA
06-Aug-2023 10:00 AM
Nice part
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Babita patel
04-Aug-2023 05:58 PM
Nice
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